कबीर दास के दोहे भाग - 2 ( Kabir Das Ke Dohe Part - 2 )
दोस्तों मैंने पिछले पोस्ट में कबीर दास के कुछ दोहों को आप लोगों के बीच शेयर किया था ,
जो हमें बहुत ही अच्छी सीख देती हैं | आज मै आप लोगों के बीच कबीर दास के कुछ और
दोहों को शेयर कर रहा हूँ , जिन्हें पढ़ने के बाद आप लोग मुझे बताना कि ये पोस्ट आप लोगों
को कैसा लगा ?
दोहा :- जो उग्या सो अंतबे , फूल्या सो कुमलाहीं |
जो चिनिया सो ढही पड़े , जो आया सो जाहीं ||
अर्थ :- इस संसार का नियम है कि जो उदय हुआ है , वह अस्त होगा | जो विकसित हुआ है ,
वह मुरझा जायेगा , जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा |
दोहा :- झूठे सुख को सुख कहे , मानत है मन मोद |
खलक चबैना काल का , कुछ मुंह में कुछ गोद ||
अर्थ :- कबीर कहते हैं कि अरे जीव !तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न
होता है ? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है , जो कुछ
तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है |
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दोहा :- ऐसा कोई ना मिले , हमको दे उपदेस |
भौ सागर में डूबता , कर गहि काढ़े केस ||
अर्थ :- कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथ प्रदर्शक
न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों
से केश पकड़ कर निकाल लेता |
दोहा :- संत ना छाडे संतई , जो कोटिक मिले असंत ,|
चन्दन भुवंगा बैठिया , तऊ सीतलता न तजंत ||
अर्थ :- सज्जन को चाहे करोड़ो दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं
छोड़ता , चन्दन के पेंड से सांप लिपटे रहते हैं , पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता |
दोहा :- कबीर तन पंछी भया , जहाँ मन तहां उड़ी जाई |
जो जैसी संगती कर , सो तैसा ही फल पाई ||
अर्थ :- कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है , और जहाँ उसका मन होता है
शरीर उड़कर वहीँ पहुच जाता है | सच है कि जो जैसा साथ करता है , वह वैसा ही
फल पाता है |
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दोहा :- तन का जोगी सब करे , मन को बिरला कोई |
सब सिद्धि सहजे पाइए , जे मन जोगी होई ||
अर्थ :- शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है , पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों
का काम है , यदि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं |
दोहा:- कबीर सो धन संचे , जो आगे को होय |
सीस चढ़ाय पोटली , ले जात न देख्यो कोए ||
अर्थ :- कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आये , सर पर
धन कि गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा |
दोहा :- माया मुई न मन मुआ , मरी - मरी गया शरीर ,
आसा तृष्णा न मुई , यो कही गए कबीर ||
अर्थ :- कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन , शरीर न जाने कितनी
बार मर चूका पर मनुष्य कि आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती , कबीर ऐसा कई बार
कह चुके हैं |
दोहा :- मन ही मनोरथ छाडी दे , तेरा किया न होई ,
पानी में घिव निकसे , तो रुखा खाए न कोई ||
अर्थ :- मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन कि इच्छाए छोड़ दो , उन्हें तुम
अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते | यदि पानी से घी निकल आये , तो रुखी रोटी
कोई न खायेगा |
दोहा :- दुःख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोय ,
जो सुख में सुमिरन करे , तो दुःख कहे को होय ||
अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवन को याद करते हैं , पर
सुख के समय कोई नहीं करता | यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए
तो दुःख ही क्यों हो !
दोहा :- साईं इतना दीजिये , जा में कुटुम समाय ,
मैं भी भूखा ना रहूँ , साधू ना भूखा जाय ||
अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजारा
चल जाए , मई खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानों को भी
भोजन करा सकूँ |
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दोहा :- काल करे सो आज कर , आज करे सो अब |
पल में प्रलय होएगी , बहुरि करेगा कब ||
अर्थ : - कबीर दास जी समय कि महत्ता बताते हुए कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो
और जो आज करना है उसे अभी करो , कुछ ही समय में जीवन ख़त्म हो जाएगा
फिर तुम क्या कर पाओगे !!
दोहा :- लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट |
पाछे फिर पछताओगे , प्राण जाहि जब छूट ||
अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि अभी राम नाम कि लूट मची है , अभी तुम भगवान् का जितना
नाम लेना चाहो ले लो नहीं तो समय निकल जाने पर , अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे
कि मैंने तब राम भगवान की पूजा क्यों नहीं की !
दोहा :- मांगन मरण समान है , मति मांगो कोई भीख |
मांगन ते मरना भला , यह सतगुरु की सीख ||
अर्थ :- मांगना मरने के बराबर है , इसलिए किसी से भीख मत मांगो , सतगुरु कहते हैं कि माँगने
से मर जाना बेहतर है , अर्थात पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो , उसे किसी
से मांगो मत |
दोहा :- आछे दिन पाछे गए , हरि ने किया न हेत |
अब पछताए होत क्या , चिड़िया चुग गयी खेत ||
अर्थ :- सुख के समय में भगवान् का स्मरण नहीं किया , तो अब पछताने का क्या फायदा ,
जब खेत पर ध्यान देना चाहिए था , तब तो दिया नहीं , अब अगर चिड़िया सारे बीज
खा चुकी है , तो खेद से क्या होगा !
दोहा :- आपा तजे हरि भजे , नख सिख तजे विकार |
सब जीवन से निर्भर रहे , साधू माता है सार ||
अर्थ :- जो व्यक्ति अपने अहम् को छोड़कर , भगवान् कि उपासना करता है , अपने दोषों को त्याग
देता है , और किसी जीव जंतु से बैर नहीं रखता , वह व्यक्ति साधू के समान और बुद्धिमान
होता है |
दोहा :- आवत गारी एक है , उलटन होय अनेक |
कह कबीर नहिं उलटिए , वही एक कि एक ||
अर्थ :- अगर गाली के जवाब में गाली दी जाए , गालियों कि संख्या एक से बढ़कर अनेक हो
जाती है | कबीर कहते हैं कि यदि गाली को पलटा न जाय , गाली का जवाब गाली
से न दिया जाय , तो वह गाली एक ही रहेगी |
दोहा :- ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होय ||
अर्थ :- अगर अपने भाषा से अहन को मिटा दिया जाए , तो दूसरों के साथ खुद को भी शांति
मिलती है |
दोहा :- बाहर क्या दिखलाये , अंतर जपिए राम |
कहा काज संसार से , तुझे धानी से काम ||
अर्थ :- बाहरी दिखावे की जगह , मन ही मन राम का नाम जपना चाहिए | संसार की चिंता
छोड़कर , संसार चलाने वाले पर ध्यान देना चाहिए |
दोहा :- बड़ा हुआ तो क्या हुआ , जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं , फल लागे अति दूर ||
अर्थ :- खजूर का पेड़ न तो राही को छाया देता है , और न ही उसका फल आसानी से पाया
जा सकता है | इसी तरह , उस शक्ति का कोई महत्व नहीं है , जो दूसरों के काम
नहीं आ सकती |
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दोहा :- भगती बिगाड़ी कामिया , इंद्री करे सवादी |
हीरा खोया हाथ थाई , जनम गवाया बाड़ी ||
अर्थ :- इच्छाओं और आकांक्षाओं में डूबे लोगों ने भक्ति को बिगाड़ कर केवल इन्द्रियों की
संतुष्टि को लक्ष्य मान लिया है | इन लोगों ने इस मनुष्य जीवन का दुरूपयोग
किया है , जैसे कोई हीरा खो दे |
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