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    Friday 25 November 2016

    कबीर दास के दोहे Kavir Das Ke Dohe Part 1

    कबीर दास के दोहे (Kavir Das Ke Dohe )

    part 1 




    कबीर दास के दोहे

    दोस्तों आज मै आप लोगों के बीच कबीर दास के कुछ दोहे प्रस्तुत कर रहा हु
    जो हमारे जीवन में उपयोगी हैं , और यदि हम इन दोहों पर विचार करें तो हमें यह
     लगेगा कि इनका हमारे जीवन में कितना महत्वहै , यदि  हम इन दोहों को   अपने जीवन में लागू
      करते हैं तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा |



    दोहा 1: -                                   बुरा जो देखन मै चला , बुरा ना मिलिया कोय ,                                          जो दिल खोजा आपना , मुझसे बुरा न कोय |


                            अर्थ :-             जब मै इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं मिला , 
                                          और जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा , तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है |


    दोहा 2: -                               पोथी पढी - पढ़ी जग मुआ , पंडित भया न कोय ,   
                                                  ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय |

     अर्थ :-          बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार  पहुँच 
                               गए , किंतु सभी विद्वान् न हो सके , कबीर मानते हैं कि  यदि कोई  व्यक्ति प्रेम के
                                  केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले , अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान  
    ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा |


    दोहा 3 :-                                                   साधू ऐसा चाहिए , जैसा सूप सुभाय , 
                                               सार - सार को गहि रहै , थोथा देई उड़ाय |

        अर्थ :-      इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है , जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता है , 
    जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे |


    दोहा 4 :-                  तिनका कबहूँ ना निन्दिये , जो पावन तर होय , 
    कबहूँ उड़ी  आँखिन पड़े , तो पीर घनेरी होय |

    अर्थ :-      कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो , जो तुम्हारे 
    पावों के नीचे दब जाता है, यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो 
     कितनी गहरी पीड़ा होती है |


    दोहा 5 :-         धीरे - धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होय , 
    माली सींचे सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय |

    अर्थ :- मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है , अगर कोई माली किसी पेड़ को  सौ
    घड़े से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा |


    दोहा 6:-     माला फेरत जुग  भया , फिरा  न मनका फेर,
    कर का मनका डार दे , मन का मनका फेर |

    अर्थ :-   कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है ,
    पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती ,
    कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़कर
    मन के मोतियों को बदलो या फेरो |


    दोहा 7 :-    जाति न पूछो साधु की , पूछ लीजिये ज्ञान ,
    मोल करो तलवार का ,पड़ा रहन दो म्यान |

    अर्थ :-  सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना  चाहिए , तलवार का मूल्य होता है ,
    न कि उसकी म्यान  (उसे ढकने वाले खोल )का |


    दोहा  8 :-    दोष पराय देखि करि ,चला हसंत हसंत ,
    अपने याद न आवई , जिनका आदि न अंत |

    अर्थ :-  यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के , दोष देख कर
    हँसता है , तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत |


    दोहा 9 :-  जिन खोजा तिन पाइया , गहरे पानी पैठ ,
    मै बपुरा डूबन डरा , रहा किनारे बैठ |

    अर्थ :-  जो प्रयत्न करते हैं , वे कुछ न कुछ वैसे ही पा लेते हैं , जैसे कोई मेहनत करने वाला
    गोता  खोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है , लेकिन कुछ बेचारे लोग
    ऐसे भी होते जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और  कुछ नहीं कर पाते |


    दोहा 10 :-  बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि ,
    हिये तराजू तौली के , तब मुख बाहर आनी |


    अर्थ :-      यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक
    अमूल्य रत्न है | इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर
    आने देता है |


    दोहा 11 :-  अति का भला न बोलना , अति की भली न चूप ,
    अति का भला न बरसना , अति की भली न धूप |

    अर्थ :-      न तो अधिक बोलना अच्छा है , न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना
    ही ठीक  है , जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं है और बहुत अधिक
    धुप भी अच्छी नहीं है |


    दोहा 12:-   निंदक नियरे राखिए , आंगन कुटी छवाय ,
    बिन पानी , साबुन बिना , निर्मल करे सुभाय |

    अर्थ :-     जो हमारी निंदा करता है , उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए ,
    वह तो बिना पानी और साबुन के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को
    साफ करता है |

    इसे भी पढ़ें Best Personality Development Tips For Our Life In Hindi


    दोहा 13 :-   दुर्लभ मानुष जन्म है , देह न बारम्बार ,
    तरुवर ज्यों पत्ता झड़े ,बहुरि न लागे डार |

    अर्थ :-      इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है , यह मानव
    शरीर उसी तरह बार - बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड जाए
    तो दोबारा  डाल पर नहीं लगता |


    दोहा  14 :-     कबीरा खड़ा बाज़ार में , मांगे सबकी खैर , 
    ना काहू से दोस्ती , ना काहू से बैर |

    अर्थ :-    इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि  सबका भला हो और
    संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी ना हो |


    दोहा 15 :-    हिन्दू कहें मोहि राम पियारा , तुर्क कहें रहिमाना , 
    आपस में दोउ लड़ी - लड़ी मुए , मरम न कोऊ जाना |

    अर्थ :-     कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क ( मुस्लिम ) को रहमान प्यारा है ,
    इस बात पर दोनों लड़ - लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे , तब भी दोनों में से कोई सच
    को नहीं जान पाया


    दोहा 16 :-    कहत सुनत सब दिन गए , उरझि न सुरइया  मन , 
    कही कबीर चेत्य नहीं अजहूँ सो पहला दिन |

    अर्थ :-    कहते सुनते सब दिन निकल गए , पर यह यह मन उलझ कर ना सुलझ पाया ,
    कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता , आज भी इसकी अवस्था
    पहले दिन के समान ही है |


    दोहा 17 :-   कबीर लहरि समंद की , मोती बिखरे आई , 
    बगुला भेद न जानई , हंसा चुनी - चुनी खाई |

    अर्थ :-    कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती जाकर  बिखर गए , बगुला बगुला उनका भेद
    नहीं जानता , परन्तु हंस उन्हें चुन चुन कर खा रहा है , इसका अर्थ यह है कि किसी भी वास्तु
    का महत्त्व जानकार ही जानता है |


    दोहा 18:-    जब गुण को गाहक मिले , तब गुण लाख बिकाई , 
    जब गुण को गाहक नहीं , तब कौड़ी बदले जाई |

    अर्थ :-    कबीर कहते हैं  कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की
    कीमत होती है , पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता , तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है |


    दोहा 19 :-   कबीर कहा गरबियो , काल गहे कर केस , 
    ना जाने कहाँ मारिसी , कै घर कै परदेस |

    अर्थ :-      कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है ? काल अपने हाथों में तेरे
    केश पकड़े  हुए है , मालूम नहीं , वह घर या परदेस में कहाँ पर तुझे मार डाले |

    इसे भी पढ़ें Assay of relationships( रिश्तों की परख )


    दोहा 20 :-   पानी केरा बुदबुदा , अस मानुस की जात , 
    एक दिन छिप जाएगा , ज्यों तारा परभात |

    अर्थ :-      कबीर का कथन है  कि जैसे पानी के बुलबुले , इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षण
    भंगुर है | जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जातें हैं , वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट
    हो जाएगी |


    दोहा 21:-          हाड़ जले ज्यूं लाकड़ी , केस जले  ज्यूं घास , 
    सब तन जलता देखि करि , भया कबीर उदास |

    दोस्तों यदि आप लोगों को ये दोहे अच्छे लगें हो तो जरूर शेयर करे और हमे कमेंट जरूर करें , धन्यववाद |

    2 comments:

    1. आज हम आपको Kabir Das Ke Dohe hindi समझाने का प्रयास करेंगे उम्मीद करते है की आप पूरी concentration से पूरा आर्टिकल पढंगे

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    2. Kabir ke doha padne se Jo pata chalta h Kabir hame gyan ki or le jate h

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