कबीर दास के दोहे (Kavir Das Ke Dohe )part 1 |
कबीर दास के दोहे दोस्तों आज मै आप लोगों के बीच कबीर दास के कुछ दोहे प्रस्तुत कर रहा हु जो हमारे जीवन में उपयोगी हैं , और यदि हम इन दोहों पर विचार करें तो हमें यह लगेगा कि इनका हमारे जीवन में कितना महत्वहै , यदि हम इन दोहों को अपने जीवन में लागू करते हैं तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा | दोहा 1: - बुरा जो देखन मै चला , बुरा ना मिलिया कोय , जो दिल खोजा आपना , मुझसे बुरा न कोय | अर्थ :- जब मै इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं मिला , और जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा , तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है | दोहा 2: - पोथी पढी - पढ़ी जग मुआ , पंडित भया न कोय , ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय | अर्थ :- बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए , किंतु सभी विद्वान् न हो सके , कबीर मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले , अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा | दोहा 3 :- साधू ऐसा चाहिए , जैसा सूप सुभाय , सार - सार को गहि रहै , थोथा देई उड़ाय | अर्थ :- इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है , जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता है , जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे | दोहा 4 :- तिनका कबहूँ ना निन्दिये , जो पावन तर होय , कबहूँ उड़ी आँखिन पड़े , तो पीर घनेरी होय | अर्थ :- कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो , जो तुम्हारे पावों के नीचे दब जाता है, यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है | दोहा 5 :- धीरे - धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होय , माली सींचे सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय | अर्थ :- मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है , अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा | दोहा 6:- माला फेरत जुग भया , फिरा न मनका फेर, कर का मनका डार दे , मन का मनका फेर | अर्थ :- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है , पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती , कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो | दोहा 7 :- जाति न पूछो साधु की , पूछ लीजिये ज्ञान , मोल करो तलवार का ,पड़ा रहन दो म्यान | अर्थ :- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए , तलवार का मूल्य होता है , न कि उसकी म्यान (उसे ढकने वाले खोल )का | दोहा 8 :- दोष पराय देखि करि ,चला हसंत हसंत , अपने याद न आवई , जिनका आदि न अंत | अर्थ :- यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के , दोष देख कर हँसता है , तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत | दोहा 9 :- जिन खोजा तिन पाइया , गहरे पानी पैठ , मै बपुरा डूबन डरा , रहा किनारे बैठ | अर्थ :- जो प्रयत्न करते हैं , वे कुछ न कुछ वैसे ही पा लेते हैं , जैसे कोई मेहनत करने वाला गोता खोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है , लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं कर पाते | दोहा 10 :- बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि , हिये तराजू तौली के , तब मुख बाहर आनी | अर्थ :- यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है | इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है | दोहा 11 :- अति का भला न बोलना , अति की भली न चूप , अति का भला न बरसना , अति की भली न धूप | अर्थ :- न तो अधिक बोलना अच्छा है , न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है , जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं है और बहुत अधिक धुप भी अच्छी नहीं है | दोहा 12:- निंदक नियरे राखिए , आंगन कुटी छवाय , बिन पानी , साबुन बिना , निर्मल करे सुभाय | अर्थ :- जो हमारी निंदा करता है , उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए , वह तो बिना पानी और साबुन के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है | इसे भी पढ़ें Best Personality Development Tips For Our Life In Hindiदोहा 13 :- दुर्लभ मानुष जन्म है , देह न बारम्बार , तरुवर ज्यों पत्ता झड़े ,बहुरि न लागे डार | अर्थ :- इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है , यह मानव शरीर उसी तरह बार - बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता | दोहा 14 :- कबीरा खड़ा बाज़ार में , मांगे सबकी खैर , ना काहू से दोस्ती , ना काहू से बैर | अर्थ :- इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी ना हो | दोहा 15 :- हिन्दू कहें मोहि राम पियारा , तुर्क कहें रहिमाना , आपस में दोउ लड़ी - लड़ी मुए , मरम न कोऊ जाना | अर्थ :- कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क ( मुस्लिम ) को रहमान प्यारा है , इस बात पर दोनों लड़ - लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे , तब भी दोनों में से कोई सच को नहीं जान पाया दोहा 16 :- कहत सुनत सब दिन गए , उरझि न सुरइया मन , कही कबीर चेत्य नहीं अजहूँ सो पहला दिन | अर्थ :- कहते सुनते सब दिन निकल गए , पर यह यह मन उलझ कर ना सुलझ पाया , कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता , आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है | दोहा 17 :- कबीर लहरि समंद की , मोती बिखरे आई , बगुला भेद न जानई , हंसा चुनी - चुनी खाई | अर्थ :- कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती जाकर बिखर गए , बगुला बगुला उनका भेद नहीं जानता , परन्तु हंस उन्हें चुन चुन कर खा रहा है , इसका अर्थ यह है कि किसी भी वास्तु का महत्त्व जानकार ही जानता है | दोहा 18:- जब गुण को गाहक मिले , तब गुण लाख बिकाई , जब गुण को गाहक नहीं , तब कौड़ी बदले जाई | अर्थ :- कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है , पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता , तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है | दोहा 19 :- कबीर कहा गरबियो , काल गहे कर केस , ना जाने कहाँ मारिसी , कै घर कै परदेस | अर्थ :- कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है ? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है , मालूम नहीं , वह घर या परदेस में कहाँ पर तुझे मार डाले | इसे भी पढ़ें Assay of relationships( रिश्तों की परख )दोहा 20 :- पानी केरा बुदबुदा , अस मानुस की जात , एक दिन छिप जाएगा , ज्यों तारा परभात | अर्थ :- कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले , इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षण भंगुर है | जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जातें हैं , वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी | दोहा 21:- हाड़ जले ज्यूं लाकड़ी , केस जले ज्यूं घास , सब तन जलता देखि करि , भया कबीर उदास | दोस्तों यदि आप लोगों को ये दोहे अच्छे लगें हो तो जरूर शेयर करे और हमे कमेंट जरूर करें , धन्यववाद | |
Friday 25 November 2016
Dohe
आज हम आपको Kabir Das Ke Dohe hindi समझाने का प्रयास करेंगे उम्मीद करते है की आप पूरी concentration से पूरा आर्टिकल पढंगे
ReplyDeleteKabir ke doha padne se Jo pata chalta h Kabir hame gyan ki or le jate h
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